पूरे सात वर्ष अवसाद में रहने के पश्चात इस वर्ष इस ग़ज़ल से मेरे साहित्यकार / ग़ज़लकार की नयी पारी शुरू हुई. अपनी बुनावट में साधारण होने के बावज़ूद मेरे लिये इस ग़ज़ल के इस रूप में बहुत माइने हैं.-
ग़ज़ल-12
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पहले से बेहतर हूं मैं.
सन्डे है घर पर हूं मैं.
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दुनिया से वाबस्ता हूं,
दुनिया से वाबस्ता हूं,
आख़िरको शायर हूं मैं.
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बच्चे हैं तो मैं, मैं हूं,
बच्चे हैं तो मैं, मैं हूं,
उनकी खातिर घर हूं मैं.
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दुनिया जिससे दुनिया है,
वो ढाई आखर हूं मैं.
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जैसा चाहे वैसा कर,
अब तेरे दर पर हूं मैं.