सज़ा मेरी ख़ताओं की मुझे दे दे।
मेरे ईश्वर मेरे बच्चों को हँसने दे।
इशारे पर चला आया यहाँ तक मैं,
यहाँ से अब कहाँ जाऊँ इशारे दे।
विरासत में मिलीं हैं ख़ुशबुऍ मुझको,
ये दौलत तू मुझे यूँ ही लुटाने दे।
मैं ख़ुश हूँ इस गरीबी मैं, फकीरी मैं,
मैं जैसा हूँ, मुझे वैसा ही रहने दे।
उजालों के समर्थन की दे ताकत तू,
अँधेरों से उसी ताकत से लड़ने दे।
दिव्य हिमाचल टीवी | सतपाल ख़याल | नई ग़ज़ल
2 दिन पहले
3 टिप्पणियां:
मैं ख़ुश हूँ इस गरीबी मैं, फकीरी मैं,
मैं जैसा हूँ, मुझे वैसा ही रहने दे।
खूबसूरत एहसास हैं...लिखते रहिये.
नीरज
वाह! हर शेर उम्दा।
sateek , utam rachna hai...
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