संवाद करना
आ गया है.
उम्र भर
सच को सराहा
सच कहा.
झूठ का
झूठ का
हर वार
सीने पर सहा.
क्या डरायेंगे
क्या डरायेंगे
हिरनकश्यप हमें,
स्वयं को
स्वयं को
प्रह्लाद करना
आ गया है.
धूल वाले रास्ते
धूल वाले रास्ते
हक़ के सबब.
राजमार्गों से करेंगे
राजमार्गों से करेंगे
होड अब.
कानवाले
कानवाले
खोलकर
सुन लें सभी,
मौन को
मौन को
प्रतिवाद करना
आ गया है.
धूप से
संवाद करना
आ गया है.
संवाद करना
आ गया है.
17 टिप्पणियां:
मौन को प्रतिवाद करना आ गया है। क्या खूब संजीव जी। प्रेरणादायी गीत है। ऐसे ही लिखते रहें। बधाई।
खुबसुरत संवाद धुप से ।
maun ka pratiwaad yaani jeene ka salika......
धूप से संवाद करना आ गया है.
उम्र भर सच को सराहा सच कहा.
झूठ का हर वार सीने पर सहा.
क्या डरायेंगे हिरनकश्यप हमें,
स्वयं को प्रह्लाद करना आ गया है.
क्या ग़ज़ब की प्रतिभा उपजी है आपमे..
आज के माहौल मे धूप से संवाद...
बहुत बढ़िया रचना....
मैंने बहुत दिनों के बाद एक बहुत ही अच्छा गीत पढा. गीत वास्तव में इतना अच्छा लगा कि यही मन कर रहा था तुम्हारा नाम काटकर अपना लिख दूं. गीत के बारे में लिखूं, गीतकार के बारे में लिखूं या अपने ऊपर जो कैफियत सवार हुई, उसका वर्णन करूं. तुम्हारे बारे में पहली बार जो लिखा था, अभी तक उस पर ही कायम हूँ, नया कुछ कहूं तो दुहराव या हल्कापन लगेगा. बस इतना ही कहना चाहूँगा, 'ये आग बुझने न पाए'.
sundar shakti!!
क्या डरायेंगे
हिरनकश्यप हमें,
स्वयं को
प्रह्लाद करना
आ गया है.
बहुत सकारात्मक और प्रेरक अभिव्यक्ति है बहुत बहुत शुभकामनाये़
क्या डरायेंगे
हिरनकश्यप हमें,
स्वयं को
प्रह्लाद करना
आ गया है
ऊर्जा भरी रचना है आपकी.......... सच कहा जब इंसान जाग जाए तो कौन उसको डरा सकता है.....
Yakin jaaniye, dil ko chhu gaya aapka geet.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }</a
धूल वाले रास्ते हक़ के सबब.
राजमार्गों से करेंगे होड अब.
कानवाले खोलकर सुन लें सभी,
मौन को प्रतिवाद करना आ गया है.धूप से
संवाद करना
आ गया है.
bahut hi sundar bhav lage .badhai!
आकर्षक व्यक्तित्व के धनी प्रिय संजीव |स्वम को प्रह्लाद करना आगया है और मौन को प्रतिवाद करना आगया है .बहुत प्यारी लाईनें |धुप से संबाद करना ,सच को सराहना और झूंठ का वर सहना बहुत सुंदर पंक्तियाँ
ajkal aise giton ki rachna kam ho rahi he. log prem geeto ko hi sab kuchh samajh rhe hai. aapke git ne nai urja dee he. dhanywad.
gagar me sagar.........
मौन को
प्रतिवाद करना
आ गया है.
धूप से
संवाद करना
आ गया है.
" सुन्दर प्रस्तुती..."
regards
आज का दिन बड़ा सुखद रहा...पहले आपकी चार नायाब ग़ज़लें पढ़ी "प्रयास" में, फिर आपसे बात हुई और अब आपका ये गीत पढ़ रहा हूँ...अहा!
स्वंय को प्रह्लाद करना आ गया...एक अनूठा मिस्रा है संजीव जी, दिल को छू गया...पूरा गीत ही बहुत सुंदर बन पड़ा है...
kya khoob likha hai sanjeev ji , bhia padhkar to ruk sa gaya . behatreen bimb... badhai ho ji ..
vijay
pls read my new poem "झील" on my poem blog " http://poemsofvijay.blogspot.com
रचना गीत का सौष्ठव व गजल का तेवर सहेजे हुए है बधाई श्याम सखा श्याम
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