रविवार, नवंबर 08, 2009

और अब आगे की-

गतांक से आगे----
सुबह उठते ही हाऊसबोट के बाहर जब मैंने आस-पास का जायज़ा लिया तो देखा कि चारों तरफ़ पहाडियों से घिरा डल झील का वह इलाका बेहद खूबसूरत था. प्रकृति अपने सुन्दरतम रूप में मेरे सामने थी. हल्का नाश्ता लेकर बाहर थोडा घूमने चले गये. डल झील के किनारे-किनारे की 15किमी0 लम्बी सडक का नाम ब्लूवर्ड रोड है.यह श्रीनगर की मुख्य सडक है. पर्यटन की दृष्टि से सारे होटल, रेस्टोरैंट और प्रतिष्ठान इसी रोड पर स्थित हैं. आज हमने गुलमर्ग जाने का निश्चय किया. श्रीनगर से गुलमर्ग लगभग 52किमी0 दूर है. बटमालू बस स्टेशन से क़रीब 40किमी0 दूर स्थित टनमर्ग तथा वहां से वाहन बदलकर क़रीब 12किमी आगे गुलमर्ग. टनमर्ग से गुलमर्ग तक का सफर बेहद आनन्ददायक था. बिल्कुल सुनसान सडक पर देवदार के खामोश जंगल अलग ही वातावरण का निर्माण कर रहे थे. दूर पहाडों पर स्थित देवदारों की श्रृंखला मनोहारी दृश्य पैदा कर रही थी. 11बजे हम गुलमर्ग पहुंच गये . पहुंचते ही ऐसा लगा कि बिल्कुल नयी दुनिया में कदम रखा हो. मौसम काफी ठण्डा था. गुलमर्ग की सुन्दरता को बयान करने के लिये मेरे पास शब्द नहीं हैं. मैंने और भी हिल स्टेशन देखे हैं. लेकिन यहां आकर मेरे दिल की कैफ़ियत अजब ही थी. गुलमर्ग एक छोटा सा हिल स्टेशन है, जिसे पर्यटकों के अनुसार विकसित किया गया है. गुलमर्ग घोडे पर बैठकर भी घूमा जा सकता है. मैं और अजय घोडों पर सवार होकर गुलमर्ग की सैर को निकल पडे. हमारे साथ घोडों के मालिक मो0साहिल थे . सडक पर घोडों पर चलते हुए बेहद खूबसूरत दृश्य आंखों के सामने थे. सड्क के किनारे थोडी-थोडी दूर पर लकडी के खोपडीनुमा मकान बने हुए थे---
क्रमश: अभी थोडी देर बाद बिजली आने पर

1 टिप्पणी:

गौतम राजऋषि ने कहा…

अच्छा संस्मरण बन पड़ा है अब तक, किंतु संक्षिप्त।
...और मेरे ख्याल से उस डल लेक की गिर्द वाली सड़क का नाम "बुलेवर्ड" है...जैसा कि फ्रेंच में कहते हैं।