शनिवार, नवंबर 14, 2009

और आगे की

गतांक से आगे--
साहिल ने बताया कि सर ये गेस्ट हाऊस हैं.जहां पर्यटक रुकते हैं. खूबसूरत वातावरण के बीच बने उन गेस्ट हाऊस को देखकर मैंने अजय से कहा कि 'छोडो यार, लौटने की फ्लाइट रद्द करो' लेकिन यह व्यवहारिक तौर पर सम्भव नहीं था. गुलमर्ग की जिन सडकों पर हम चल रहे थे, सर्दी के मौसम में उअन पर लगभग 4से5फुट तक बर्फ जम जाती है. थोडा आगे कश्मीर के पूर्व राजा हरी सिंह का महल भी देखा. रखरखाव के अभाव में काफी जीर्ण अवस्था में था. महल पर्यटकों के लिये बन्द था, लेकिन लकडी से बना यह महल अपने समय में बेहद खूबसूरत रहा होगा. फिलहाल यह राजा हरी सिंह के पुत्र डा. कर्ण सिंह की निजी सम्पत्ति है. हमने साहिल से वहां के आम लोगों की जिन्दगी के बारे में भी जानने की कोशिश की. साहिल ने बताया कि,'सर यहां बेहद गरीबी है. सिवाय पर्यटन के यहां आय का कोई दूसरा साधन नहीं है. आप लोग बाहर से यहां घूमने आते हैं और उसी से हमारी रोजी-रोटी चलती है' साहिल की उम्र बमुश्किल 19-20 वर्ष की रही होगी, लेकिन उसकी शादी हो चुकी थी. उसने बताया कि 'कश्मीर के खराब दौर में मैं बहुत छोटा था. उस समय मेरे वालिद ने मुझे और भाई-बहनों को बडी मुश्किल से पाला है. यहां उस समय पर्यटक न के बराबर आते थे.' साहिल अपनी बातों से लगातार यह जाहिर करने की कोशिश कर रहा था कि हिन्दू और मुसलमान में कोई फर्क नहीं है. सब इंसान ही होते हैं. अब इसे अच्छी सोच कहिये या हिन्दू पर्यटकों को लुभाने का प्रयास पर कश्मीर के बुरे वक्त ने उस दौर के युवाओं की सोच और ज़ुबान पर को बदल दिया है. वहां मौजूद एक मजबूत टिन की चादरों से ढके एक विशाल हाल के बारे में बताया कि यहां सर्दियों में 'आइस स्केटिंग' के खेलों का आयोजन किया जाता है. गुलमर्ग में हम एक चीज घूमने से वंचित रह गये वो था गंडोला. ये एक रोप-वे प्रणाली है, जिसके पहले चरण में रोप-वे पहाडों पर आपको 300मीटर की ऊंचाई तक ले जाता है और दूसरे चरण में वहां से 500मी. की ऊंचाई तक ले जाता है. यानि कि कुल 800मी. की ऊंचाई तक आप जा सकते हैं. रखरखाव के कार्यों की वजह से यह सेवा बन्द थी. शहरी कोलाहल से दूर गुलमर्ग की वादियों में यह दिन बेहद सुखद था. शाम के चार बज चुके थे. वक़्त हो गया था गुलमर्ग से विदा लेने का. इतनी खूबसूरत और दिलकश वादियां मैंने कभी नहीं देखी थी. गुलमर्ग से वापसी में एक स्थानीय अध्यापक आरिफ साहब भी हमारे सहयात्री थे जो किसी निजी कार्य से गुलमर्ग आये थे. आरिफ साहब ने बताया कि अब तो शिक्षा के क्षेत्र में यहां काफी विकास हो रहा है. नये-नये तकनीकी कालेज खुल रहे हैं. पिछले 7-8 सालों में बी.एड. के इअतने निजी कालेज खुल गये हैं कि पंजाब और हिमाचल तक से छात्र यहां पढने आते हैं. बुरे वक़्त को याद करते हुए उनकी आवाज़ बहुत भावुक हो गयी. बोले,' आजकल की नयी पीढी क्या जाने कि बुरे हालात क्या होते हैं. उन्होंने तो अपनी जवानी के दिन कश्मीर के अच्छे हालातों में देखे है6. हम लोगों की जवानी तो कश्मीर के बुरे हालातों के साथ शुरू हुई और जब बुरे हालात खत्म हुए तो जवानी भी खत्म हो गयी'.
श्रीनगर लौटकर शाम के वक़्त हमने शिकारे से डलझील घूमने का मन बनाया. हल्का-हल्का अंधेरा हो चला था. कुशन लगी हुई गद्दियों से सजा हुआ शिकारा बेहद आरामदायक था. चारों तरफ पहाडो से घिरी हुई डल झील में शिकारे से घूमना मुझे जन्नत में होने का अहसास दे रहा था. खूबसूरत रोशनियों से जगमगाते हाऊस बोटों के श्रृंखला देखने लायक थी. दूर पहाड पर रोशनी से नहाता हुआ किला अज़ब ही दृश्य उत्पन्न कर रहा था........

5 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

आज् पिछली पोस्ट भी देखी बहुत सुन्दर तस्वीरें और वर्णन है लगता है हम सब कुछ साक्षात देख रहे हैं बधाई

गौतम राजऋषि ने कहा…

रोचक और दिलचस्प वर्णन...

यहाँ एक बात का उल्लेख करना चाहूँगा कि कश्मीर में सबसे गरीब भी तीन वक्त का भोजन जुटा लेता है परिवार के लिये...हमारे बिहार-यूपी की तरह नहीं कि एक रोटी के लिये भी तरसते हैं असंख्य परिवार....

संजीव गौतम ने कहा…

गौतम भाई की बात से सहमत.

कडुवासच ने कहा…

... सुन्दर प्रस्तुति !!!

daanish ने कहा…

huzzoor....kahaan hain aap aajkal ??
abhi Kaashmir mein hi...?!?