गतांक से आगे---
हमें बेसब्री से प्रसिद्ध जवाहर सुरंग का इंतज़ार था. एशिया की सबसे लंबी सडक सुरंग के बारे में बचपन से ही सुन रखा था. कई जगह बीच में सडक पर shed बने हुथे थे. मैंने उनके बारे में शाहजहां भाईजान से पूछा तो उन्होंने बताया कि ये Avalanch zone है. ठंड में यहां पर ऊंची पहाडियों से बर्फ़ लुढकती हुई आती है और जिससे दुर्घटना हो जाती है. ऐसी जगहों को चिह्नित करके वहां ये शेड्स बना दिये गये हैं, जिससे यात्री और वाहन सुरक्षित रहें. आगे बढते हुए हम लोग जवाहर सुरंग के प्रवेश द्वार पर आ पहुंचे. पीर पंजाल की पहाडियों में बनी हुई जवाहर सुरंग वास्तव में जम्मू एवं कश्मीर के बीच सीमा का काम करती है. 2.5 किमी0 लम्बी जवाहर सुरंग के आस-पास सेना के अत्यधिक जवानों की उपस्थिति यह दर्शा रही थी कि यह सुरंग कितनी महत्वपूर्ण है. जवाहर सुरंग से बाहर आते ही एक और आश्चर्य मेरा इंतज़ार कर रहा था. मेरी सोच थी कि कश्मीर की सडकें पर्वतीय सडकों की तरह घुमावदार होंगी, लेकिन यहां तो सपाट और सीधी सडक बिलकुल मैदानी इलाकों जैसी. जवाहर सुरंग से कश्मीर मात्र 80किमी0 दूर रह गया था. शाम के पांच बज गये थे लेकिन सीधी-सपाट सडक होने की वज़ह से हम तेज़ी से अपनी मंज़िल की ओर बढ रहे थे. जवाहर सुरंग से श्रीनगर तक हर गांव में 10-12 और रास्ते में थोडी-थोडी दूर पर 4से5 फ़ौजी जवानों की मौज़ूदगी वातावरण में ख़ौफ़ पैदा कर रही थी. श्रीनगर से थोडा पहले पामपुर क़स्बा केसर की खेती के लिये मशहूर है. देश-विदेश तक यहां से केसर की सप्लाई ख़ूब होती है. हम लोगों ने भी असली केसर लेने की इच्छा भाईजान से व्यक्त की, लेकिन कम से कम 2800रू0प्रति 10 ग्राम के दाम सुनकर इरादा बदल दिया. लगभग 7बजे हम लोग श्रीनगर के बाहरी इलाके में पहुंच चुके थे. यहां भी आगरा जैसा जाम सडकों पर पूरी शिद्दत से उपस्थित था. वाकई पूरा हिन्दुस्तान इस मामले में एक है. शाहजहां भाईजान से मित्रता और प्रगाढ हो चुकी थी. उनका घर हालांकि श्रीनगर में घुसते ही था लेकिन वो हमें डल झील के किनारे छोडकर और अपने परिचित की हाऊसबोट भी बुक करवाकर आये.किराया भी बेहद मुफ़ीद मात्र 700रू0 प्रतिदिन. हाऊस बोट के मालिक मो0एज़ाज से रात्रि का भोजन हमने बोट पर ही मंगा लिया और एजाज भाई को भी अपने साथ ही बैठा लिया. भोजन करते हुए एजाज भाई से बातचीत चलती रही. एजाज भाई ने बताया कि पूरी डल झील में लगभग 700 हाऊसबोट हैं. हमारा ये काम पीढियों पुराना है. मेरे दादा और परदादा यही काम करते थे. एक हाऊसबोट की उम्र तक़रीबन 50से60 साल होती है. कुछ संवेदनशील मुद्दों पर भी हमने उनके मन की बात जाननी चाही क्योंकि कश्मीर के बारे में जानने बहुत इच्छा थी हमारी. एजाज भाई ने बताया कि 'सर आज का कश्मीर तो बेहद खुशहाल है. पिछले 9-10 सालों में बहुत कुछ बदल गया है. सन 2000 के पहले तो यहां के अधिकतर होटलों पर फ़ौजों का क़ब्ज़ा था. शाम 6 बजते ही कर्फ़्यू लग जाता था. उस समय आतंकी और फ़ौज़ यहां के लोगों पर बहुत ज़ुल्म करते थे.' एजाज भाई ने हलांकि स्थानीय युवाओं के आंतकी बनने से इंकार तो नहीं किया लेकिन कहा कि,'सर ये लोग भी क्या करें . आप ही बतायें कि सिवाय पर्टयन के यहां के लोगों पर रोज़गार है? आतंकवाद का मुख्य कारण ही यहां की गरीबी है. यहां श्रीनगर शहर में लोगों पर फिर भी काम है लेकिन यहां के गांवों में बेहद गरीबी है. पाकिस्तान की शह, पैसों का लालच और कुछ हद तक फ़ौज़ों की दमनकारी नीतियां युवकों को आतंकी बनने पर मज़बूर कर देती हैं. महज़ 8से 10हज़ार रू0 के लिये लोग आतंकी बनने के लिये तैयार थे. फ़ौज़ में भ्रष्टाचार भी इसकी मुख्य वज़ह है. नहें तो आप ही बतायें 10से 15 लाख फ़ौज़, जिसमें बार्डर पर बी0एस0एफ0, उसके पीछे इंडियन आर्मी और अन्दर की सुरक्षा सी0आर0पी0एफ0 व जम्मू-कश्मीर पुलिस के पास हो तो बिना भ्रष्टाचार के क्या ये संभव है कि बार्डर पार से आतंकी आ जायें. सर मेरे कुछ रिश्तेदार बार्डर पार पाक अधिकृत कश्मीर में भी हैं. वो तो हमसे 50साल पीछे चल रहे हैं. वहां के हालात तो बद से बदतर हैं.' स्थानीय नेताओं से भी एजाज भाई ख़ासे नाराज़ थे. उनका कहना था कि, 'सारी समस्याओं के पीछे कहीं न कहीं ये नेता लोग भी हैं. अपनी दुकान चलाने के लिये ये कुछ भी कर सकते जाते हैं. अगर महीने में लाल चौक पर कोई घटना न घटे तो कोई न कोई नेता खुद ही साज़िश रच लेता है. सब मिले हुए हैं.' मीडुया वालों से भी उन्हें शिकायत थी कि, 'पता नहीं क्या दिखाते और छापते रहते हैं. सर आप ही बतायें क्या आपको लगता है कि अब कश्मेर कहीं से भी अशांत है. मुझे उसकी बातें सही लगी कि गरीबी और लाचारी ही अपने पीछे आतंकवाद और नक्सलवाद लेकर आती हैं. हमने एजाज भाई स्वादिष्ट खाने के लिये धन्यवाद दिया और सोने के लिये विदा मांगी.........
क्रमश ...........
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12 घंटे पहले