रविवार, अगस्त 23, 2009

दोहाकार---अशोक अंज़ुम


अशोक अंजुम साहित्य जगत के बहुचर्चित व्यक्तित्वों में से एक हैं. हिन्दी की साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं के लगभग हर दूसरे-तीसरे अंक में उनकी उपस्थिति देखी जा सकती है. साहित्यिक मंचों के साथ-साथ रंगमंच के क्षेत्र में भी उनकी सक्रिय भागेदारी है. उनकी अब तक -'मेरी प्रिय ग़ज़लें', 'मुस्कानें हैं ऊपर-ऊपर', 'अशोक अंजुम की प्रतिनिधि ग़ज़लें', 'तुम्हरे लिये ग़ज़ल', 'जाल के अन्दर जाल मियां' (ग़ज़ल संग्रह); एक नदी प्यासी (गीत सग्रह); भानुमति का पिटारा', 'ख़ुल्लम ख़ुल्ला', 'दुग्गी चौके छ्क्के', अशोक अंजुम की हास्य-व्यंग्य कविताएं' (हास्य-व्यंग्य संग्रह) साहित्यिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है. इसके अतिरिक्त पांच ग़ज़ल संग्रह, नौ हास्य-व्यंग्य संग्रह, छ: दोहा संकलन, दो लघुकथा संकलन तथा दो गीत संकलन अंजुम जी के संपादन में प्रकाशित हो चुके हैं. पिछले पन्द्रह वर्षों से 'प्रयास' साहित्यिक त्रैमासिकी का संपादन कर रहे हैं. संवेदना प्रकाशन के नाम से अपना प्रकाशन भी चलाते हैं. इस सबमें सबसे बडी बात ये कि ये सब वे एक बहुत छोटी जगह अलीगढ से लगभग पन्द्रह किलोमीटर दूर कासिमपुर नामक छोटे से कस्बे से करते हैं. कासिमपुर दो वज़हों से जाना जाता है-एक-अपने बिज़ली के पावरहाऊस के लिये दो- साहित्यिक पावर हाऊस अशोक अंजुम के लिये. अभी उनका दोहा संग्रह प्रकाशित हुआ है-'प्रिया तुम्हारा गांव'. आज मन है इसी दोहा संग्रह से अंजुम जी के कुछ दोहे आप सब सुधीजनों को पढवाने का. आप सब दोहे पढें और अपनी बेशकीमती राय से हमेशा की तरह अवश्य अवगत करायें. आप चाहें तो सीधे श्री अंजुम जी को उनके मोबाइल न0 91-09319478993 पर या उनके डाक के पते-ट्रक गेट कासिमपुर (अलीग़ढ) 202127 पर भी बधाई प्रेषित कर सकते हैं. तो अब दोहों का आनन्द लें-
1-
आमंत्रण देता रहा, प्रिये तुम्हारा गांव.
सपनों में चलते रहे, रात-रात भर पांव.
2-
धूल झाडकर जब पढी, यादों जडी किताब.
हर पन्ने पर मिल गये सूखे हुए गुलाब.
3-
सहती रहती रात-दिन, तरह-तरह के तीर.
हर लेती हैं बेटियां, घर-आंगन की पीर.
4-
घर आंगन में हर तरफ, एक मधुर गुंजार.
हंसी-ठिठोली बेटियां, व्रत-उत्सव,त्यौहार.
5-
दोनों की फ़ितरत अलग, अलग-अलग मजमून.
इक घर में कैसे रहें, दौलत और सुकून.
6-
काहे की रस्साकशी, काहे की तकरार.
सब धर्मों का सार है, प्यार प्यार बस प्यार.
7-
सच्चाई के पांव में, जुल्मों की ज़ंजीर.
अंजुम फिर भी ना रुकें, गाते फिरें कबीर.
8-
साफ़ नज़र आता नहीं, किस रस्ते पर हिन्द.
लोकतंत्र की आंख में, हुआ मोतियाबिन्द.
9-
अरी व्यवस्था है पता, जो है तेरे पास.
अंतहीन बेचैनियां, मुट्ठी भर सल्फास.
10-
धुन्ध-धुंए ने कर दिया, हरियाली का रेप.
चिडिया फिरती न्याय को, लिये वीडियो टेप.
11-
चाटुकारिता हो गई, उन्नति का पर्याय.
पूंछ हिलाना बन गया, लाभ-देय व्यवसाय.
12-
दीवारें इस ओर हैं, दीवारें उस ओर.
ऐसे में फिर किस तरह, उगे प्यार की भोर.
13-
सूरज लगता माफ़िया, हफ़्ता रहा वसूल.
नदिया कांपे ओढकर, तन पर तपती धूल.
14-
घर-घर में आतंक है, मन-मन में है पीर.
गये दिनों की याद में, है उदास कश्मीर.
15-
मां चंदन की गंध है, मां रेशम का तार.
बंधा हुआ जिस तार से, सारा ही घर द्वार.
16-
रिश्तों का इतिहास है, रिश्तों का भूगोल.
सम्बन्धों के जोड का, मां है फेवीकोल.

शनिवार, अगस्त 15, 2009

ग़ज़ल-10


सभी मित्रों को स्वतंत्रता दिवस की आत्मिक शुभकामनाओं के साथ एक ग़ज़ल प्रस्तुत है और साथ में फोटो है चर्चित ग़ज़लकार बडे भाई श्री अशोक अंजुम जी(बीच में) और आगरा के युवा कवि भाई पुष्पेन्द्र पुष्प के साथ-

ग़ज़ल
प्रयासों मे कमी होने न पाये.
विजय बेशक अभी होने न पाये.

इसी कोशिश में हर इक पल लगा हूं,
कि गूंगी ये सदी होने न पाये.

तुम्हें ये सोचना तो चाहिये था,
कि रिश्ता अजनबी होने न पाये.

वतन की बेहतरी इसमें छिपी है,
सियासत मज़हबी होने न पाये.

जुदा हैं हम यहां से देखना पर,
मुहब्बत में कमी होने न पाये.

रविवार, अगस्त 09, 2009

शेयर बाज़ार मेरी नज़र में.......

चौंकिये मत मैं कवि ही हूं बस आज मन है कि इस पर भी अपने मन की बात आप सबसे शेयर कर ली जाय. मैं कोई इस बाज़ार का एक्सपर्ट तो नहीं लेकिन जो मैं इसके बारे मैं जानता और मानता हूं वही आप सबसे साझा करने की कोशिश करता हूं. बहुत सारे लोग सोचते हैं कि अरे अपने शेयर बेच लेते तो ज्यादा अच्छे रहते अब मार्केट गिरने पर खरीद लेते या अरे पहले न बेचकर अब बेचते तो अच्छा मुनाफा कमा लेते. ऐसा सोचना सही नहीं है. शेयरों को अथवा इस बाज़ार को ऊपर जाने/ले जाने के लिये वाल्यूम अर्थात शेयरों की आवश्यकता होती है. ऐसा कभी नहीं हो सकता कि बडे-बडे संस्थागत और विदेशी निवेशक शेयरों को बेचें, जनता खरीदे और बाज़ार ऊपर जाये. होता ये है कि ऊपर जाने पर आम निवेशक हर स्तर पर अपने शेयर बेचता जाता है, बडे-बडे सं0और विदे0 निवेशक शेयरों को खरीदते जाते हैं और बाज़ार ऊपर चढता जाता है. एक समय ऐसा आता है कि आम निवेशक की स्थिति दो तरह की हो जाती है- या तो बाज़ार में उसकी भागेदारी कम हो जाती है अथवा तेजी को देखते हुए आम निवेशक शेयरों को बेचना बन्द कर रोकना शुरू कर देता है, बस बाज़ार यहीं से गिरना शुरू हो जाता है क्योंकि ऊपर जाने के लिये उसके पास वाल्यूम ही नहीं हैं. अब बाज़ार उस समय तक करैक्शन मोड में रहता है जब तक कि आम निवेशक घबराकर या परेशान होकर शेयरों को बेचना शुरू नहीं कर देता है. इसलिये ये निश्चित है कि बाज़ार जितनी तेज़ी से ऊपर जायेगा उतना ही डीप करैक्शन होने की संभावना ज्यादा रहेगी. जब बाज़ार ऊपर से करैक्शन लेता है और आम निवेशक तुरंत शेयर बेचकर बाज़ार से दूर होने लगते हैं तो बाज़ार तुरंत वाल्यूम मिल जाने के कारण वापस ऊपर जाना शुरू कर देता है और यदि आम निवेशक उस करैक्शन मानकर बाज़ार नें निवेशित रहता है तथा और खरीददारी करता है तो बाज़ार वाल्यूम की तलाश में नीचे का रुख किये रहता है और तब तक किये रहता है जब तक कि आम निवेशक ऊपरी स्तरों पर ख़रीदे गये शेयरों को घाटे में बेचकर बाहर नहीं हो जाता. कुल मिलाकर बात ये है कि ये बाज़ार जनता से पैसा उगाहने के लिये बना है. देने के लिये नहीं. ऐसा कभी नहीं हो सकता कि आम निवेशक कोई शेयर पचास रुपये में खरीदकर सौ रुपये मे बेचे और खरीदनेवाला संस्थागत निवेशक हो हां ये हो सकता है कि संस्थागत निवेशक उसी शेयर को सौ रुपये में खरीदे और फिर एक सौ पचास रुपये में फिरसे आम निवेशक को चाशनी लगाकर बेच दे. पहले वाला आम निवेशक ज़रूर पचास रुपये कमालेगा लेकिन दूसरा आमनिवेशक पचास रुपये गंवायेगा. छुरी और तरबूज़े में से चाहे तरबूज़ा छुरी पर गिरे या छुरी तरबूज़े पर, नुकसान तरबूज़े का ही होना है, आमीन!

शनिवार, अगस्त 01, 2009

गीत

आज एक गीत और साथ में
सूर्य ग्रहण की फोटो प्रस्तुत है.





गीत

धूप से
संवाद करना
आ गया है.

उम्र भर
सच को सराहा
सच कहा.
झूठ का
हर वार
सीने पर सहा.
क्या डरायेंगे
हिरनकश्यप हमें,
स्वयं को
प्रह्लाद करना
आ गया है.

धूल वाले रास्ते
हक़ के सबब.
राजमार्गों से करेंगे
होड अब.
कानवाले
खोलकर
सुन लें सभी,
मौन को
प्रतिवाद करना
आ गया है.
धूप से
संवाद करना
आ गया है.