
अशोक अंजुम साहित्य जगत के बहुचर्चित व्यक्तित्वों में से एक हैं. हिन्दी की साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं के लगभग हर दूसरे-तीसरे अंक में उनकी उपस्थिति देखी जा सकती है. साहित्यिक मंचों के साथ-साथ रंगमंच के क्षेत्र में भी उनकी सक्रिय भागेदारी है. उनकी अब तक -'मेरी प्रिय ग़ज़लें', 'मुस्कानें हैं ऊपर-ऊपर', 'अशोक अंजुम की प्रतिनिधि ग़ज़लें', 'तुम्हरे लिये ग़ज़ल', 'जाल के अन्दर जाल मियां' (ग़ज़ल संग्रह); एक नदी प्यासी (गीत सग्रह); भानुमति का पिटारा', 'ख़ुल्लम ख़ुल्ला', 'दुग्गी चौके छ्क्के', अशोक अंजुम की हास्य-व्यंग्य कविताएं' (हास्य-व्यंग्य संग्रह) साहित्यिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है. इसके अतिरिक्त पांच ग़ज़ल संग्रह, नौ हास्य-व्यंग्य संग्रह, छ: दोहा संकलन, दो लघुकथा संकलन तथा दो गीत संकलन अंजुम जी के संपादन में प्रकाशित हो चुके हैं. पिछले पन्द्रह वर्षों से 'प्रयास' साहित्यिक त्रैमासिकी का संपादन कर रहे हैं. संवेदना प्रकाशन के नाम से अपना प्रकाशन भी चलाते हैं. इस सबमें सबसे बडी बात ये कि ये सब वे एक बहुत छोटी जगह अलीगढ से लगभग पन्द्रह किलोमीटर दूर कासिमपुर नामक छोटे से कस्बे से करते हैं. कासिमपुर दो वज़हों से जाना जाता है-एक-अपने बिज़ली के पावरहाऊस के लिये दो- साहित्यिक पावर हाऊस अशोक अंजुम के लिये. अभी उनका दोहा संग्रह प्रकाशित हुआ है-'प्रिया तुम्हारा गांव'. आज मन है इसी दोहा संग्रह से अंजुम जी के कुछ दोहे आप सब सुधीजनों को पढवाने का. आप सब दोहे पढें और अपनी बेशकीमती राय से हमेशा की तरह अवश्य अवगत करायें. आप चाहें तो सीधे श्री अंजुम जी को उनके मोबाइल न0 91-09319478993 पर या उनके डाक के पते-ट्रक गेट कासिमपुर (अलीग़ढ) 202127 पर भी बधाई प्रेषित कर सकते हैं. तो अब दोहों का आनन्द लें-
1-
आमंत्रण देता रहा, प्रिये तुम्हारा गांव.
सपनों में चलते रहे, रात-रात भर पांव.
2-
धूल झाडकर जब पढी, यादों जडी किताब.
हर पन्ने पर मिल गये सूखे हुए गुलाब.
3-
सहती रहती रात-दिन, तरह-तरह के तीर.
हर लेती हैं बेटियां, घर-आंगन की पीर.
4-
घर आंगन में हर तरफ, एक मधुर गुंजार.
हंसी-ठिठोली बेटियां, व्रत-उत्सव,त्यौहार.
5-
दोनों की फ़ितरत अलग, अलग-अलग मजमून.
इक घर में कैसे रहें, दौलत और सुकून.
6-
काहे की रस्साकशी, काहे की तकरार.
सब धर्मों का सार है, प्यार प्यार बस प्यार.
7-
सच्चाई के पांव में, जुल्मों की ज़ंजीर.
अंजुम फिर भी ना रुकें, गाते फिरें कबीर.
8-
साफ़ नज़र आता नहीं, किस रस्ते पर हिन्द.
लोकतंत्र की आंख में, हुआ मोतियाबिन्द.
9-
अरी व्यवस्था है पता, जो है तेरे पास.
अंतहीन बेचैनियां, मुट्ठी भर सल्फास.
10-
धुन्ध-धुंए ने कर दिया, हरियाली का रेप.
चिडिया फिरती न्याय को, लिये वीडियो टेप.
11-
चाटुकारिता हो गई, उन्नति का पर्याय.
पूंछ हिलाना बन गया, लाभ-देय व्यवसाय.
12-
दीवारें इस ओर हैं, दीवारें उस ओर.
ऐसे में फिर किस तरह, उगे प्यार की भोर.
13-
सूरज लगता माफ़िया, हफ़्ता रहा वसूल.
नदिया कांपे ओढकर, तन पर तपती धूल.
14-
घर-घर में आतंक है, मन-मन में है पीर.
गये दिनों की याद में, है उदास कश्मीर.
15-
मां चंदन की गंध है, मां रेशम का तार.
बंधा हुआ जिस तार से, सारा ही घर द्वार.
16-
रिश्तों का इतिहास है, रिश्तों का भूगोल.
सम्बन्धों के जोड का, मां है फेवीकोल.
20 टिप्पणियां:
संजीव जी, अशोक जी परियच कराने के लिए आभार। दोहे अच्छे हैं बस कुछ शब्द खटकते हैं जैसे फेवीकोल, रेप आदि।
बेहतरीन प्रस्तुति.... साधुवाद..
बहुत अच्छे दोहे व परिचय के लिये धन्यवाद ।
अशोक जी से परिचय करवाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
साफ़ नज़र आता नहीं, किस रस्ते पर हिन्द.
लोकतंत्र की आंख में, हुआ मोतियाबिन्द.
बहुत बढिया ।
संजीव जी, अशोक जी परियच कराने के लिए आभार
dohe behatareen hain. dhanyawaad.
बहुत दिनों के बाद अशोक अंजुम को पढ़ने का अवसर मिला, अवसर देने के लिए धन्यवाद. दोहे अब इतने लोगों द्वारा और इतनी भारी तादाद में थोपे जा रहे हैं कि इन से भी सा लगने लगा है. अशोक अंजुम तो माहिर कलमकार हैं. दोहे तो बेहतर हैं लेकिन नयापन दिखने के जज्बे से कुछ दोहे अर्थ के स्तर पर स्थूल हो गए हैं तो कुछ हास्य का आभास कराने लगे हैं. मैं अपनी बेबाक राय लिख रहा हूँ और चाहूँगा कि मेरे विचार श्री अशोक अंजुम तक पहुंचें. मैं गज़लों-गीतों में जिस अशोक को देखने का आदी हूँ, दोहों में नजर नहीं आया. संजीव मुझे क्षमा करना, तुम्हारे मित्र की वो प्रशंसा नहीं हो सकी जिसका वो अधिकारी है.
बहुत दिनों के बाद अशोक अंजुम को पढ़ने का अवसर मिला, अवसर देने के लिए धन्यवाद. दोहे अब इतने लोगों द्वारा और इतनी भारी तादाद में थोपे जा रहे हैं कि इन से भी सा लगने लगा है. अशोक अंजुम तो माहिर कलमकार हैं. दोहे तो बेहतर हैं लेकिन नयापन दिखने के जज्बे से कुछ दोहे अर्थ के स्तर पर स्थूल हो गए हैं तो कुछ हास्य का आभास कराने लगे हैं. मैं अपनी बेबाक राय लिख रहा हूँ और चाहूँगा कि मेरे विचार श्री अशोक अंजुम तक पहुंचें. मैं गज़लों-गीतों में जिस अशोक को देखने का आदी हूँ, दोहों में नजर नहीं आया. संजीव मुझे क्षमा करना, तुम्हारे मित्र की वो प्रशंसा नहीं हो सकी जिसका वो अधिकारी है.
मां चंदन की गंध है, मां रेशम का तार. बंधा हुआ जिस तार से, सारा ही घर
अशोक अंज़ुम जी की बेहतरीन रचना प्रस्तुति के लिये धन्यवाद
अशोक अंजुम जी से परिचय कराने, और उनके दोहों से रु-ब्-रु करवाने का हार्दिक आभार.
इन दोहों को पढने के बाद उनकी कुछ ग़ज़लों से भी रु-ब्-रु करवायेंगें, ऐसी ही आशा है...............
अंजुम जी तक हमारी बधाइयाँ भी पहुंचा दीजियेगा.
हार्दिक आभार.
khubsurat dohe
अंजुम जी के तो हम एक जमाने फैन हैं...
इस प्रस्तुति के लिये शुक्रिया संजीव जी!
अशोक जी परियच कराने के लिए आपका बहुत धन्यवाद
वाकई में इनकी रचनाएं बहुत ही प्रभावशाली हैं
आभार
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अशोक जी की गज़लों से वाकिफ़ था आज आपने उनके दोहों से भी परिचय करा दिया। सुंदर दोहे हैं, दिल को छू लेने वाले। बधाई अशोक अंजुम जी कोभी और आपको भी इस प्रस्तुति के लिये।
एक से बढ़ कर एक लाजवाब दोहे वाह संजीव जी वाह...आनंद आ गया पढ़ कर...बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने इन दोहों को अपने माध्यम से हमें पढ़वाया...
नीरज
संजीव जी,
दोहे लाजवाब हैं,अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
VAAH ..... SAB DOHE LAJAWAAB ... EK SE BADH KAR EK .... SACH, SEEDHE JANEEN SE JUDE ..... AAPKA SHUKRIYA ASHOK JI KE PARICHAY KE LIYE ....
अशोक जी का परिचय बहुत ही अच्छा लगा। उनकी रचना धर्मिता को सलाम सभी दोहे बहुत सुन्दर हैं धन्यवाद्
वाह संजीव जी वाह
अब आप भी आलोचना के छेत्र में उतर आये हैं
स्वागत है
अशोक जी के लिए दोहे अच्छे हैं
सर्वत जी के ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी भी अच्छी लगी
nice
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