वही हालात हैं बदला हुआ कुछ भी नहीं है.
वही चेहरे वही किस्से नया कुछ भी नहीं है.
पुराने लोग हैं कुछ जो नज़र आते हैं वरना,
नयी तहज़ीब में तहज़ीब सा कुछ भी नहीं है.
बहुत बेचैन होता हूँ मैं जब भी सोचता हूँ,
यहाँ इस मुल्क़ में अब मुल्क़ सा कुछ भी नहीं है.
अगर सोचो तो बेशक दूरियाँ ही दूरियाँ हैं,
अगर ठानो तो इतना फ़ासला कुछ भी नहीं है.
इसे मुश्किल तो हम ही मान बैठे हैं नहीं तो,
अभी भी झूठ को ललकारना कुछ भी नहीं है.
25 टिप्पणियां:
अगर सोचो तो बेशक दूरियां ही दूरियां है
अगर ठानो तो इतना फासला कुछ भी नहीं है...
संजीव जी मतला पढ़ते ही लगा के जरुर खानाजा यही कहीं छुपा है और वो मुझे मिल ही गया इस शे'र में बहोत ही मुकम्मल शे'र कहे है आपने...एक खुबसूरत शेर के लिए दिल से ढेरो बधाई आपको...
अर्श
bahut hi badhiyaa
baDhiya bhaav hain
अगर सोचो तो बेशक दूरियां ही दूरियां है
अगर ठानो तो इतना फासला कुछ भी नहीं है...
bahut hi khoobsurat gazal, har sher lajawaab, badhai sweekaren.
सुंदर रदीफ़ वाली एक बहुत ही सुंदर ग़ज़ल संजीव जी..
वाह !
"नयी तहज़ीब..." वाला शेर खूब बना है
बस दाद दिये जा रहा हूँ कि आगरा तक पहुँचे
हमारा ' सोच ' ही हमें निर्मित करता है और इसे ' ठान ' लेने में बदलते आपके तेवर ग़ज़ल में बखूबी उभरकर आये हैं ! बहुत अच्छा लिख रहे हैं आप !
मेरा मेल नहीं मिल रहा है क्या आपको?
sunil11b@yahoo.coin पर किया है दो मेल
इस कविता को अपनी आवाज़ में अपने संशिप्त परिचय के साथ मेरे पास भेज दें rasprabha@gmail.com
gajal ke bhaav bahut gahre hai
पहले तो मैं तहे दिल से आपका शुक्रियादा करना चाहती हूँ कि आपको मेरी शायरी पसंद आई!
मैं जिस जगह में रहती हूँ वहां पे कोई दिक्कत नहीं है! मेलबर्न और सिडनी में हंगामा हो रहा है! खैर सब ठीक हो जाएगा!
बहुत बढ़िया ग़ज़ल लिखा है आपने! मुझे बेहद पसंद आया!
पुराने लोग हैं कुछ जो नज़र आते हैं वरना,
नयी तहज़ीब में तहज़ीब सा कुछ भी नहीं है
बहुत ही लाजवाब............खूबसूरत ग़ज़ल है..........नए नए हैं सारे शेर कमाल के शेर हैं
भाई, आपको पढने के बाद कई कहावतें याद आईं, जैसे आया ऊँट पहाड़ तले या हैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे.... बडी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा. मैं बदकिस्मत हूँ अब तक आप से महरूम रहा. देश में आप जैसा, बेहतरीन लिखने वालों का नाम उँगलियों पर गिना जा सकता है.
मैं इधर काफी व्यस्त रहा. अब भी पूरी तरह मुक्त नहीं हूँ. फ़िलहाल आज ही १ माह बाद ब्लॉग पर आया हूँ. उम्मीद है आप सम्पर्क बनाये रखेंगे.
बात आप की दिल में उतर गयी है, इसके सिवा हमारी जबा पर कुछ भी नहीं है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
आपकी ये ग़ज़ल अभी पढ़ी। वाह!
ये शेर खास पसंद आये-
अगर सोचो तो बेशक दूरियाँ ही दूरियाँ हैं,
अगर ठानो तो इतना फ़ासला कुछ भी नहीं है.
इसे मुश्किल तो हम ही मान बैठे हैं नहीं तो,
अभी भी झूठ को ललकारना कुछ भी नहीं है.
”अभी भी’ के बदले कोई और शब्द हों तो? ’वगरना’ या ’हाँ सच इस" या ऐसा कुछ।
... बहुत सुन्दर, कमाल की गजल, प्रसंशनीय अभिव्यक्ति !!!!!
बहुत बेचैन होता हूँ मैं जब भी सोचता हूँ,
यहाँ इस मुल्क़ में अब मुल्क़ सा कुछ भी नहीं है
इसे मुश्किल तो हम ही मान बैठे हैं नहीं तो,
अभी भी झूठ को ललकारना कुछ भी नहीं है.
यही बैचनी है आखिरमें जो हमको बचालेगी
सिवा इसके हमें कोई रास्ता दिखता नहीं है
मुकम्मल शे'र
बधाई
प्रिय संजीव
तुम्हारे मुह्ब्ब्तनामे और उसके साथ इतने सारे प्यार ने मुझे बेमोल खरीद लिया. जब तुम्हारी पहली कमेन्ट मिली थी, मैं उसी रोज़ आगरा से वापस आया था पूरे दो दिन के बाद. सोचो, एक अच्छे रचनाकार से न मिल पाने का दुःख कितना हुआ होगा मुझे. मैं, फिलहाल लखनऊ अपनी रोटी कमाने के लिए रहता हूँ. मेरा महीने का २० दिन तो यात्रायें खा जाती हैं इस लिए फिर आगरा कब जाना होगा, कह नहीं सकता, लेकिन आप सरकारी आदमी हो, लखनऊ आना लगा रहता होगा, अतः जब कभी ऐसा हो, मुझे खबर देना.
तुम लिखने में सुस्त दिखाई दे रहे हो. मैं भी प्रतिदिन तुम्हारे ब्लॉग/ ब्लोग्स पर नया पाने की नाकाम कोशिश कर रहा हूँ. जवान आदमी हो, सुस्ती न दिखाओ.
उत्तर की आशा में,
सर्वत जमाल
पुराने लोग हैं कुछ जो नज़र आते हैं वरना,
नयी तहज़ीब में तहज़ीब सा कुछ भी नहीं है.
bahut hi achhi aur dil.ksh ghazal kahi hai janaab aapne.....aur iss sher meiN "tehzeeb-sa" ka koi jawaab naheeN... bahut hi khoobsurti se istemaal kiya hai.
badhaaee swikaareiN
aur...hausla-afzaaee ke liye bahut-bahut shukriya.
---MUFLIS---
बेहतरीन गजल है भाई संजीव जी !
नई तहजीब में तहजीब सा कुछ भी नहीं है ।
बहुत खूब ! वाकई कई जमाने के रंग-ढंग देख कर कई बार लगता है कि तहजीब ओ अदब का चलन अब शायद महज तारीख की बात बन कर रह गया है । इस सामयिक-सामाजिक सोच को गजल के खूबसूरत अंदाज में पेश करने का शुक्रिया और हमारे ब्लाग कोलाहल पर आने का भी ।
कोलाहल से कौस्तुभ
संजीव जी
आपकी टिप्पडी मिली बहुत अच्छा लगा
मुझे सकारात्मक टिप्पडी से ज्यादा वो टिप्पडी भाती है जिनमे मेरी कमियों को बताया गया हो आपसे अनुरोध है की अपने इस अनुज की कमियों को बताते रहा करिए बहुत कम ही लोग इस तरह की टिप्पडी करते है और ये ही मेरी नाराजगी है की लोग नए लिखने वालों को ये बताते ही नहीं की उनमे क्या कमी है और उसे किस तरह सुधारा जाये
दरअसल ये तीन नए शेर गुरु जी को इस्लाह के लिए दिया ही नहीं और भूल वश पोस्ट कर बैठा
आपका अनुज वीनस केसरी
मुझे यह गजल अच्छी लगी है, इसमें आश्चर्य सा कुछ भी नहीं है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
नमस्कार संजीव जी
बहुत बेहतरीन ग़ज़ल है. दिल से वाह वाह निकल रही है. आपकी mail ID kya hai
अगर सोचो तो बेशक दूरियाँ ही दूरियाँ हैं,
अगर ठानो तो इतना फ़ासला कुछ भी नहीं है.
very nice
Sanjeev ji aapki gazal padh kar man khush ho gaya itni sunder aur bandhi hui gazal jo honth par aate hi gunguna uthe
Mujhe nayi tahzeeb wala sher khoob pasand aaya
aapko ab hamesha padhti rahungi
इसे मुश्किल तो हम ही मान बैठे हैं नहीं तो,
अभी भी झूठ को ललकारना कुछ भी नहीं है.
हासिले गज़ल शे'र है,ललकारना काफ़िए ने खूबसूरती और दोबाला कर ्दी बधाई
श्याम सखा श्याम
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