फतेहपुरसीकरी से लगभग तीन किमी. आगे भरतपुर रोड पर बायें हाथ पर हाईवे से लगा हुआ रसूलपुर गाँव है, अरावली श्रंखला की पहाडियों की तलहटी में. वहां के लोगों को नहीं मालूम कि किस धरोहर के साये में रहने का सौभाग्य उन्हें प्राप्त है. दरअसल वे पहाडियां कभी हमारे पूर्वजों का घर रहीं है. उन पहाडियों में उनके बनाऍ हुऍ भित्तिचित्र आज भी उनकी कहानियां कहने के लिये मौजूद हैं. सन १९९५ में बी.ऍड. के दौरान हमारे सांस्क्रतिक टीचर श्री दयालन सर हम बीस बाईस शिष्यों को वहां के टूर पर ले गये थे. . मैंने अपनी डायरी में उन चित्रों को उकेरा था. वो डायरी मेरे पास आज भी सुरक्षित है. २६जनवरी २०१०, को गणतंत्र दिवस पर हम चारों मित्र यानि राहुल, हरिओम, कमल और मैंने उन्हीं पहाडियों के साथ बिताने का मन बनाया और दो मोटरसाइलों पर जा पहुँचे रसूलपुर. पुरानी स्थिति तो अब वहां नहीं है. खनन माफियाओं ने उस धरोहर को बहुत नुकसान पहुँचाया है. हालांकि पिछले आठ साल से खनन बन्द है, लेकिन हमें ऍक ही खोह सही सलामत मिली. पहाडियां ऍक तरफ से ढलवां लेकिन दूसरी तरफ से ऍकदम खडी हैं जैसे किसी नदी की धार ने उन्हें काट दिया हो. हो सकता है पुरा काल में वहाँ कोई नदी रही हो. इस संभावना को इससे भी बल मिलता है कि वहाँ सूखी नदी जैसा आज भी मौजूद है. सम्राट अकबर का बनवाया हुआ तेरहमोरी बाँध आज भी सही सलामत है. आगरा के इतिहासकार और मेरे पुराने सहपाठी डा. तरुण शर्मा के अनुसार उन भित्तिचित्रों के विषय में आजादी के समय से ही जानकारी है और गजेटियर में उनका प्रकाशन भी हो चुका है. खैर पुरानी डायरी से और अब के चित्रों के साथ आज की पोस्ट और अगली बार फतेहपुरसीकरी के साथ कुछ सैर.....
फ़हमी बदायूनी
2 दिन पहले
12 टिप्पणियां:
....... प्रभावशाली प्रस्तुति !!!
पुरातन सामग्री संरक्षित होना चाहिये. आपका प्रयास सार्थक है. कम से कम लिपिबद्ध तो हो ही जाये.
फतेहपुर सिकरी तो जाना हुआ है मगर इस जगह के बारे में मालूम नहीं था, आपकी इस पोस्ट से इसके बारे में जानकारी मिली.
एक ज्ञानवर्धक पोस्ट के लिए बधाई
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रयास है । सही बात है अपनी विरासत को सम्भालना ही चाहिये। शुभकामनायें
bahut uttam jaankari, sanjeev ji dhanyawaad.
समझ में नहीं आता ये पुरातत्व और पर्यटन वाले क्या कर रहे हैं. ऐसी जगह और कहीं कोई ज़िक्र नहीं. अकबर का बनवाया बाँध मौजूद और पर्यटन के मानचित्र में न जाने किन-किन जगहों के नाम. तस्वीरें बहुत अच्छी लगीं और हाँ उस किशोर वय के लडके द्वारा डायरी पर बनाए रेखाचित्र भी पसंद आए.
आप बता रहे हैं कि गज़ेटियर में भी इस पुरातात्त्विक स्थल का उल्लेख है तो इसके संरक्षण के लिये शासकीय व्यवस्था क्यों नहीं है। मिर्ज़ापुर में चुनार के पास भी एक ऐसा स्थल है जहाँ गुफा चित्र मिले हैं लेकिन वहाँ भी समुचित व्यवस्था नहीं है। क्या हम इन धरोहरों के प्रति संवेदनशील नहीं हैं? आप की यह पोस्ट इस पर सोचने को मज़बूर करती है। महत्त्वपूर्ण जानकारी देने के लिये आभार।
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आप, कहाँ चले गए?
बहुत दिनों से हाल-समाचार नहीं, जल्दी कोई पोस्ट कीजिये.
Badi sashakt post hai..pata nahi mujhse kaise chhoot gayi..hamare deshme aisee kitni puratan jagahen hongi, jinke bareme aam aadmi ko maloomat nahi!
सुन्दर प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...होली की शुभकामनाएं....
मैं तो आगरा मेें ही रहता हूं जाना आना लगा रहता है, पर आपन जानकारी बहुत अच्छी दी
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