मंगलवार, मार्च 17, 2009

ग़ज़ल

सज़ा मेरी ख़ताओं की मुझे दे दे।
मेरे ईश्वर मेरे बच्चों को हँसने दे।


इशारे पर चला आया यहाँ तक मैं,
यहाँ से अब कहाँ जाऊँ इशारे दे।


विरासत में मिलीं हैं ख़ुशबुऍ मुझको,
ये दौलत तू मुझे यूँ ही लुटाने दे।


मैं ख़ुश हूँ इस गरीबी मैं, फकीरी मैं,
मैं जैसा हूँ, मुझे वैसा ही रहने दे।


उजालों के समर्थन की दे ताकत तू,
अँधेरों से उसी ताकत से लड़ने दे।

3 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

मैं ख़ुश हूँ इस गरीबी मैं, फकीरी मैं,
मैं जैसा हूँ, मुझे वैसा ही रहने दे।

खूबसूरत एहसास हैं...लिखते रहिये.
नीरज

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी ने कहा…

वाह! हर शेर उम्दा।

Rajat Narula ने कहा…

sateek , utam rachna hai...