सोमवार, जून 05, 2006

ग़ज़ल

दुश्मनों के साथ है वो और मेरे साथ भी.
क्यूँ निभाता है वो अक्सर इस तरह से दोस्ती.


मंजिलों की ओर झूठे रास्तों से जाऊँ क्यों,
मंजिलों की ओर सच्चे रास्ते हैं और भी.

क्या वजह है सिफ॔ शीशे के घरों तक ही गई,
आज भी कच्चे घरों से दूर क्यों है रोशनी.

क्या व्यवस्था है नियम है ये कहाँ का मुल्क में,
सत्य को हर हाल में करनी पडेगी खुदकुशी.

रोशनी बेशक न हो चारों तरफ मेरे मगर,
मैं अँधेरों का समथ॔न कर न सकता हूँ कभी.

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