लकीरों को मिटाना चाहता हूँ।
हदों के पार जाना चाहता हूँ।
विरासत में मिले हैं चन्द सपने,
उन्हें सूरज दिखाना चाहता हूँ।
सुफल लगते हैं मेहनत के शजर पर,
ये बच्चों को बताना चाहता हूँ।
बहुत ख़ुश दीखती हो तुम कि जिसमें,
वही किस्सा सुनाना चाहता हूँ।
मेरी ग़ज़लो मैं अपनी मौत के दिन,
तुम्हें ही गुनगुनाना चाहता हूँ।
15 टिप्पणियां:
BAHOT HI PYAARI GAZAL KAHI HAI AAPNE DHERO BADHAAYEE...
ARSH
bahut achchhi gazal hai aapki ...achchhi lagi bahut
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
लकीरों को मिटाना चाहता हूँ।
हदों के पार जाना चाहता हूँ।
विरासत में मिले हैं चन्द सपने,
उन्हें सूरज दिखाना चाहता हूँ।
.........सुंदर कविता। अच्छी लगी
बहुत बढिया गज़ल है।बधाई स्वीकारें।
बेहतरीन गजल ।
बहुत खूब। चलिए मैं भी कुछ प्रयास करूँ-
सपने विरासत के हों या अपने।
मैं तो सबको बचाना चाहता हूँ।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
सुफल लगते हैं मेहनत के शजर पर,
ये बच्चों को बताना चाहता हूँ।
बेहतरीन....आपकी ग़ज़ल के सभी शेर बहुत अच्छे लगे...लिखते रहें
नीरज
अच्छी ग़ज़ल।
एक सुझाव-
इसे इस तरह कर के देखें, बहर सही लगती है ज़्यादा
मैं लकीरों को मिटाना चाहता हूँ
उन हदों के पार जाना चाहता हूँ
जो विरासत में मिले हैं चन्द सपने,
मैं उन्हें सूरज दिखाना चाहता हूँ
आदि...
विरासत में मिले हैं चन्द सपने,
उन्हें सूरज दिखाना चाहता हूँ।
लकीरों को मिटाना चाहता हूँ।
हदों के पार जाना चाहता हूँ।
.....mugdh ho gai
umda rachna. badhai
मेरी ग़ज़लो मैं अपनी मौत के दिन,
तुम्हें ही गुनगुनाना चाहता हूँ।
वाह...वाह.......बहुत खूब .....!!
संजीव जी आपका आना सुखद लगा...ब्लॉग जगत में कई उम्दा गजलकार लिख रहे हैं उम्मीद है आपको उनसे मिल कर ख़ुशी होगी....!!
विरासत में मिले हैं चन्द सपने,
उन्हें सूरज दिखाना चाहता हूँ।
मेरी ग़ज़लो मैं अपनी मौत के दिन,
तुम्हें ही गुनगुनाना चाहता हूँ।
शानदार गजल के जानदार शेर
लिखते रहिये
संजीव जी
आपके ब्लाग पर आकर और आपकी गजल पढ़कर बहुत अच्छा लग रहा है। मन को छूने वाले शब्दों के लिए बधाई।
बहुत समय बाद वापस मिल गये. बड़ी खुशी हुई!!
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