बुधवार, जुलाई 01, 2009

ग़ज़ल

कांटे चुनता रहता हूं.
रिश्ते बुनता रहता हूं.
मेरी कौन सुनेगा अब,
मैं ही सुनता रहता हूं.
इस आती पीढी को देख,
सर को धुनता रहता हूं.
जाने किन उम्मीदों में,
सपने बुनता रहता हूं.
ये दिन भी कट जायेंगे,
सबसे सुनता रहता हूं.

20 टिप्‍पणियां:

M Verma ने कहा…

ये दिन भी कट जायेंगे,
सबसे सुनता रहता हूं.
bahut khoob

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

behad umda gazal,
badhayi ho..

ओम आर्य ने कहा…

bahut hi badhiya gazal

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बढिया गज़ल है..

रश्मि प्रभा... ने कहा…

kat to jayenge hi ye bhi din.......bahut badhiyaa gazal

Udan Tashtari ने कहा…

क्या बात हैं..बहुत चुन चुन के बात कही..

कांटें चुनता रहता हूँ
रिश्ते बुनता रहता हूँ...

-बहुत खूब!!

वीनस केसरी ने कहा…

बहुत खूबसूरत गजल है मतले ने ख़ास आकर्षित किया
वीनस केसरी

नीरज गोस्वामी ने कहा…

इस आती पीढी को देख,
सर को धुनता रहता हूं

ये वो संवाद है जो पुरानी पीढी हमेशा नयी पीढी के लिए दोहराती आयी है...जबकि ये बात गलत है...नयी पीढी ने हमेशा अपने से पहले वाली पीढी से बढ़िया और हट के काम किया है...भविष्य हमारी आशा है उसे देख सर धुनने वाली ठीक नहीं...आप किस सन्दर्भ आती पीढी के बारे में ऐसा कह रहे ये स्पष्ट करें.

आपकी पूरी ग़ज़ल बहुत अच्छी और असरदार है... बधाई...
नीरज

admin ने कहा…

शानदार गजल कही है आपने।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

संजीव गौतम ने कहा…

दादा नीरज जी आपका कहना बिल्कुल सही है. कभी विशेष मनोदशा में ऐसे भी विचार आ जाते हैं बस.

कडुवासच ने कहा…

... कमाल की गजल है, बेहद प्रसंशनीय अभिव्यक्ति !!!!!!!!

श्रद्धा जैन ने कहा…

ye din bhi kat jayenge
sabse sunta rahta hoon

chhoti beh'r mein kamaal ka kahan hai aapka

daanish ने कहा…

ek badee hi khoobsurat aur dilchasp ghazal kahi hai aapne.
har sher baat kartaa hai
khyaalaat bhi steek haiN
badhaaee .
---MUFLIS---

निर्मला कपिला ने कहा…

संजीवजी पहली बार आपका न्लोग देखा और अपकी गज़ल दिल को छू गयी
्कांटें चुनता रहता हूँ
रिश्ते बुनता रहता हूँ...
बहुत सुन्दर लाजवाब बधाई

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

बहुत उम्दा शेर....
इस सुन्दर रचना के लिये बहुत बहुत धन्यवाद...

गौतम राजऋषि ने कहा…

छोटी बहर में बेमिसाल ग़ज़ल संजीव जी...आहा!

खूबसूरत शेर सब-के-सब।

आपकी ग़ज़लें पढ़ने को उत्सुक रहता हूँ। तनिक जल्दी-जल्दी आया कीजिये!

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

वाह संजीव जी इतने सरे ब्लॉग एक साथ चलाने भी आसान नहीं हैं ....आप तो हर छेत्र में माहिर हैं ...गीत , गजल, दोहे, वाह ....!!

और ये गजल तो इतने कम शब्दों में गहरी बात कह गयी ....

कांटें चुनता रहता हूँ
रिश्ते बुनता रहता हूँ...

रिश्ते कांटे चुनने से ही बचे रह सकते हैं वर्ना टूटने का भय बना रहता है .....बहुत खूब.....!!

ललितमोहन त्रिवेदी ने कहा…

जाने किन उम्मीदों में,
सपने बुनता रहता हूं.
सपनों की यही बुनावट तो आपकी निजता है संजीव जी ,इसे न छोडियेगा ! नयी पीढी भी आपका एहतराम करेगी ! अच्छी रचना है !

गर्दूं-गाफिल ने कहा…

सरवत साहब के ब्लॉग पर टिप्पणी बहुत अच्छी है

gazalkbahane ने कहा…

अच्छी गज़ल है एक शे'र पर दोबारा गौर करें यह गयल को कमजोर कर रहा है .
इस आती पीढी को देख,{ इस मिसरे को फ़िर देखें}

सर को धुनता रहता हूं
श्याम सखा श्याम
shyam.skha@gmail.com