शनिवार, अगस्त 15, 2009

ग़ज़ल-10


सभी मित्रों को स्वतंत्रता दिवस की आत्मिक शुभकामनाओं के साथ एक ग़ज़ल प्रस्तुत है और साथ में फोटो है चर्चित ग़ज़लकार बडे भाई श्री अशोक अंजुम जी(बीच में) और आगरा के युवा कवि भाई पुष्पेन्द्र पुष्प के साथ-

ग़ज़ल
प्रयासों मे कमी होने न पाये.
विजय बेशक अभी होने न पाये.

इसी कोशिश में हर इक पल लगा हूं,
कि गूंगी ये सदी होने न पाये.

तुम्हें ये सोचना तो चाहिये था,
कि रिश्ता अजनबी होने न पाये.

वतन की बेहतरी इसमें छिपी है,
सियासत मज़हबी होने न पाये.

जुदा हैं हम यहां से देखना पर,
मुहब्बत में कमी होने न पाये.

34 टिप्‍पणियां:

अमिताभ मीत ने कहा…

इसी कोशिश में हर इक पल लगा हूं,
कि गूंगी ये सदी होने न पाये.

जुदा हैं हम यहां से देखना पर,
मुहब्बत में कमी होने न पाये.

बहुत बढ़िया है भाई.

रविकांत पाण्डेय ने कहा…

इसी कोशिश में हर इक पल लगा हूं,
कि गूंगी ये सदी होने न पाये.

बहुत सुंदर लगा ये शेर!! अच्छी गज़ल के लिये बधाई।

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

वतन की बेहतरी इसमें छिपी है,
सियासत मज़हबी होने न पाये.

बड़े बड़े सियाशती खिलाड़ियों के आगे यह काम थोड़ा मुस्किल है पर उम्मीद करता हूँ.सफलता मिलें..

भावपूर्ण ग़ज़ल..बधाई..

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

वतन की बेहतरी इसमें छिपी है,
सियासत मज़हबी होने न पाये.

बड़े बड़े सियाशती खिलाड़ियों के आगे यह काम थोड़ा मुस्किल है पर उम्मीद करता हूँ.सफलता मिलें..

भावपूर्ण ग़ज़ल..बधाई..

ओम आर्य ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना है ..........बधाई आप सबको भी.........

ओम आर्य ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना है ..........बधाई आप सबको भी.........

mehek ने कहा…

तुम्हें भी सोचना तो चाहिये था,
कि रिश्ता अजनबी होने न पाये.


वतन की बेहतरी इसमें छिपी है,
सियासत मज़हबी होने न पाये.
bahut hi lajawab gazal,ye sher bahut pasand aaye.

वीनस केसरी ने कहा…

तुम्हें भी सोचना तो चाहिये था,
कि रिश्ता अजनबी होने न पाये

माशाल्लाह खूबसूरत गजल ............

आपको भी स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

आपने मेरे ब्लॉग पर मुझसे एक प्रश्न किया था
उसके लिए मैंने आपकी पिछली पोस्ट पर कमेन्ट किया था

आपकी प्रतिक्रिया के इंतज़ार में
वीनस केसरी

गर्दूं-गाफिल ने कहा…

इसी कोशिश में हर इक पल लगा हूं,कि गूंगी ये सदी होने न पाये.

बहुत खूब
यह जज्बा अगरचे देश के खूने सुखं मे है
यकीनन फने आजादी मेरे वतन में है

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

behatareen rachna.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

इसी कोशिश में हर इक पल लगा हूं,
कि गूंगी ये सदी होने न पाये.

Bahoot hi skashakt gazal hai Sanjeev ji...aur is sher mein vyavathaa se jojhte huve maanas ka lajawaab chitran hai..... kamaal ka sher hai....kurbaan hun is sher par...

Chandan Kumar Jha ने कहा…

अच्छा लगा यहा आकर.....उम्दा गजल.आभार

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढिया गज़ल है।बधाई।

Randhir Singh Suman ने कहा…

good

"अर्श" ने कहा…

प्रयासों मे कमी होने न पाये.
विजय बेशक अभी होने न पाये.

इसी कोशिश में हर इक पल लगा हूं,
कि गूंगी ये सदी होने न पाये.

सजीव जी ये दोनों नायाब शे'र आपको बरबस ही आज के चुनिन्दा शायीरों से अलग करके रखती है ... क्या उम्दा खयालात है... दोनों शे'र के बारे में कुछ भी कहना ... उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़ अपने बस की बात नहीं... बहुत बहुत बधाई साहिब...


अर्श

Vinay ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना है

गीता पंडित ने कहा…

इसी कोशिश में हर इक पल लगा हूं,
कि गूंगी ये सदी होने न पाये.


waah....

aapke blog par aakar achcha laga....har sher apne aap men gagar men sagar liye hue....

badhaee gautam ji...


sa-sneh
gita pandit

गौतम राजऋषि ने कहा…

अहा...क्या बात है सर...क्या बात है!

"इसी कोशिश में हर इक पल लगा हूं,कि गूंगी ये सदी होने न पाये" वाह...सुभानल्लाह !

और मतला जबरदस्त बन पड़ा है। आखिरी शेर भी खूब भाया है। तस्वीर फ़ब रही है। अंजुम जी अब मुँछें नहीं रखते?

सर्वत एम० ने कहा…

प्रयासों में कमी होने न पाए...कमाल है. जैसा सोचा था बिलकुल वैसी ही गजल. किस शेर की तारीफ़ करूं और किसे नज़रअंदाज़ किया जाये, यह सोचना ही हिमाकत है. जन्माष्टमी और स्वाधीनता की दिवस की देर से सही, लेकिन दुरुस्त शुभकामनाएं.

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

बहुत अच्छी ग़ज़ल... बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....

sandhyagupta ने कहा…

Likhte rahiye.Shubkamnayen.

रंजना ने कहा…

Bas soch rahi hun ki kise behtar kahun...aapki kahi baaton ko ya aapke kahne ke andaaz ko....

Jaise anmol sundar bhaav waisi hi bejod abhivyakti....

Is sundar marmsparshi rachna ke liye aapka bahut bahut aabhar aur sadhuwaad.

संजीव गौतम ने कहा…

दादा सरवत जी आपने कल फोन पर बहुत अच्छा सुझाव दिया. मैने आते ही उस पर अमल कर लिया है. तीसरे शेर में 'भी' के स्थान पर 'ये' कर लिया है. शेर में अब ज्यादा जान आ गयी है. मुझे गर्व है कि मुझे रास्ता दिखाने के लिये आपका साथ मिला है.

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी ने कहा…

वतन की बेहतरी इसमें छिपी है,
सियासत मज़हबी होने न पा्ये

सबसे अच्छा शेर ये लगा, इस मौक़े पर।

आपके ब्लाग पर इसके पहले, आपका नवगीत देखा, बेहद अच्छा लगा है। विशेष बधाई।

निर्मला कपिला ने कहा…

वतन की बेहतरी इसमें छिपी है,
सियासत मज़हबी होने न पाये.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है
इसी कोशिश में हर इक पल लगा हूं,
कि गूंगी ये सदी होने न पाये.
लाजवाब पुश्प जी को और आपको बहुत बहुत शुभकामनायें

BrijmohanShrivastava ने कहा…

आकर्षक व्यक्तित्व के धनी प्रिय संजीव |महान साहित्यकारों के दर्शन कराने हेतु धन्यबाद गजल = फिलहाल विजय की उम्मीद न भी हो तो प्रयासों में कमी नहीं होना चाहिए |हर पल इस प्रयास में रहना के यह सदी गूंगी न हो जावे | यह बात उस शेर के विपरीत है जिसमें कहा गया है ""मुमकिन है कल जुबानों कलम पर हों बंदिशें ,आँखों को गुफ्तगू का सल्लीका सिखाईये ""यह भी अच्छा शेर है कि रिश्ता अजनवी न होने पावे मगर लोग तो कहते है "दोस्ती करना मगर घर का पता मत देना ""सियासत को मजहबी होने रोकना बहुत ही दुष्कर काम है यद्यपि असंभव नहीं है मगर ये सियासत _""मसलहत आमेज़ होते हैं सियासत के कदम ,तू न समझेगा सियासत तू अभी इंसान है ""जुदा होने पर भी मोहब्बत में कमी न हो असल में वही मोहब्बत है |हर शेर उम्दा +बधाई

mayank.k.k. ने कहा…

आप तो बढियां गजलगो लगते हैं बहुत खूबसूरती है गजल में
9415418569

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

जुदा हैं हम यहां से देखना पर,
मुहब्बत में कमी होने न पाये.

इन दो पंक्तियों में कितनी गहरी बात कह दी आपने तो... ..!!

Arshia Ali ने कहा…

सच के करीब।
( Treasurer-S. T. )

kshama ने कहा…

Siyasat ' mazhab' kaa galat arth leke chal rahee hai..!

'Mazhab nahee sikhata aapasme bair rakhna."

Aayiye aapke is prayas me aapka saath nibhaun!

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'Kavita' blog pe zaroor padhen,gar samay mile to,

"ek hindustanee kee lalakaar, phir ekbaar"

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

kyaa baat hai....aaj ham bhi kaayal hue aapke....sach....!!

Ankit ने कहा…

नमस्कार संजीव जी,
बहुत अच्छी रचना है, मतला और आखिरी शेर तो गज़ब ढा रहे हैं.

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

संजीव जी आज फिर पढ़ी आपकी ग़ज़ल..मैने सोचा कुछ नया आया, क्या मगर कुछ मिला नही
लाइए कुछ नया ..सब इंतज़ार कर रहे है..

storyteller ने कहा…

जुदा हैं हम यहां से देखना पर,
मुहब्बत में कमी होने न पाये

panktiyaan pasand aayin,bahut badhiya gajal hai